गुरुवार, 30 मई 2013

धरती माँ ने पकडे कान, काहे पैदा किया इंसान

-----------------रजत राजवंशी की रचना----------------

धरती माँ ने पकडे कान, काहे पैदा किया इंसान 
भाई से भाई लड़ता है, बेटा बाप पे अकड़ता है 
धन-दौलत की खातिर इन्सां, अपनों के सीने चढ़ता है 
बेटी बिके बाज़ारों में, ठगी भरी व्यापारों में 
नेता रीढ़विहीन हो गए, जनता पिसती नारों में 
कोई भेड़िया, कोई सूअर है, नहीं कोई इनमें इंसान 
धरती माँ ने पकडे कान, काहे पैदा किया इंसान 
अपने सीने पर मैंने इंसान को दिया बसेरा है
अपने स्वार्थ के लिए इसी ने मेरा सीना चीरा है
इन्सां होकर भी ये इन्सां, इन्सां का खून बहाता है
फिर भी जाने क्यों यह इन्सां, इन्सां ही कहलाता है
एक दिन खुद ये इंसानों से कर देगा मुझको वीरान
धरती माँ ने पकडे कान, काहे पैदा किया इंसान
कभी कहीं पर, कभी कहीं पर बम से खेल रहा है होली
जगह-जगह बमबारी करके फाड़ रहा है मेरी चोली
मैंने इसे दिया है पानी, मैंने इसे दिया है खाना
इसने शुरू किया है मुझ पर हिंसा का तांडव फैलाना
लगता है ये इन्सां एक दिन मेरी भी ले लेगा जान
धरती माँ ने पकडे कान, काहे पैदा किया इंसान
लूट-डकैती मार-काट, चाकू-छुरियां, बम और गोली
क्या इसको बस यही याद है, भूल गया है मीठी बोली
बात-बात पर लड़ने वाला, बिना बात झगड़ने वाला
जाति-पांति और ऊँच-नीच की रोज़ सीढियां चढ़ने वाला
प्रेम-प्रीत और सत्य अहिंसा का यह भूल गया है ज्ञान
धरती माँ ने पकडे कान, काहे पैदा किया इंसान
---------रजत राजवंशी (योगेश मित्तल)-------------------

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