गुरुवार, 30 मई 2013

चुप ना रहो, कुछ तो बोलो

-----------------रजत राजवंशी की रचना----------------
चुप ना रहो, कुछ तो बोलो 
तुम बोलो ना, कुछ तो बोलो 
कानों में मधु रस तो घोलो 
तुम बोलो ना, कुछ तो बोलो 
आवाज़ तुम्हारी सुनने को 
जाने कब से हम तरस गए 
तुम बोलो और हम सुनें 
इन्हीं सपनों में कितने बरस गए 
अब और ना तरसाओ हमको
कुछ भी बोलो कुछ तो बोलो
चुप ना रहो, कुछ तो बोलो
तुम बोलो ना, कुछ तो बोलो
कानों में मधु रस तो घोलो
तुम बोलो ना, कुछ तो बोलो
तुम जब से दूर गए हमसे
नींद उडी हमारी रातों की
हर रात तुम्हीं याद आते हो
एक रील चलती है बातों की
मेरी नींद उड़ा कर बेदर्दी
तुम चैन की नींद बेशक सो लो
पर बोलो ना कुछ तो बोलो
तुम बोलो ना, कुछ तो बोलो
कानों में मधु रस तो घोलो
तुम बोलो ना, कुछ तो बोलो
हम कितनी बातें करते थे
कभी रोते थे, कभी हँसते थे
कभी बात-बात पर लड़ते थे
कभी बिना बात अकड़ते थे
वो मस्ती, वो दिन, क्या दिन थे
पहले लड़ लो, फिर खुद रो लो
चुप ना रहो, कुछ तो बोलो
तुम बोलो ना, कुछ तो बोलो
कानों में मधु रस तो घोलो
तुम बोलो ना, कुछ तो बोलो

---------रजत राजवंशी (योगेश मित्तल)-------------------

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