सोमवार, 3 जून 2013

भ्रष्टाचारी नेताओं क्या खाक करोगे तुम शासन,

-----------------रजत राजवंशी की रचना----------------
भ्रष्टाचारी नेताओं क्या खाक करोगे तुम शासन,
जब तुम ही इसकी जड़ हो तो कैसे हो इसका निष्कासन
कुर्सी पर तुम जब से बैठे, मोटा माल ही कूट रहे
शर्म नहीं आती तुमको, जनता का पैसा लूट रहे
अपने और रिश्तेदारों का, घर भर मालामाल किया
लूट-लूट जनता का पैसा, जनता को कंगाल किया
तुम्हें मूर्ख ही मानें नेता, तुम तो हो कलियुग के रावण
भ्रष्टाचारी नेताओं क्या खाक करोगे तुम शासन,
जब तुम ही इसकी जड़ हो तो कैसे हो इसका निष्कासन
आटा चावल दाल सब्जियां, बढ़ा दिए हैं सबके दाम
पानी मंहगा, दूध है मंहगा, महंगे आलू, मंहगे आम
बिजली मंहगी, सफ़र है मंहगा, कैसे जाएँ चारों धाम
मंहगाई की मारी जनता, कहीं ना पाए तनिक आराम
मगर लग्जरी, ए.सी. कार में नेता घूमें सुबहोशाम
सिंगापुर या लन्दन भागें, छींक आये या होए जुकाम
अरे एक दिन मरोगे तुम भी, कहाँ ले जाओगे सारा धन
भ्रष्टाचारी नेताओं क्या खाक करोगे तुम शासन,
जब तुम ही इसकी जड़ हो तो कैसे हो इसका निष्कासन
कभी हवाला कभी कमीशन, खूब मलाई खाते हैं
फिर भी पेट इतने मोटे हैं खाली ही रह जाते हैं
नई-नई स्कीमों से नित देश को लूटा जाता है
कागज पर बनती है योजना, माल डकारा जाता है
कागज़ पर बनती योजना, कागज़ पर पूरी हो जाती
देश और जनता को धोखा, देते इनको शर्म ना आती
अरे कलमुंहों बदल गया है तुम्हें पूजने वालों का मन
ऐसा न हो, एक दिन जनता काट ले तुम सबकी गर्दन
भ्रष्टाचारी नेताओं क्या खाक करोगे तुम शासन,
जब तुम ही इसकी जड़ हो तो कैसे हो इसका निष्कासन

-------रजत राजवंशी-----------------

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