सोमवार, 3 जून 2013

तुझे छींक भी ना आये और ज़ुकाम भी ना हो

-----------------रजत राजवंशी की रचना----------------
तुझे छींक भी ना आये और ज़ुकाम भी ना हो 
कोई गम कोई दुःख सुबह शाम भी ना हो 
महकें खुशबू से हरदम रातें तेरी 
मीठी सबको लगें मीठी बातें तेरी 
अपनी परेशानियां मुझे दे दे सभी 
मेरी जान, तू कभी परेशान भी ना हो 
तुझे छींक भी ना आये और ज़ुकाम भी ना हो 
कोई गम कोई दुःख सुबह शाम भी ना हो 
तेरी आदत मुझे कुछ ऐसी हुई 
बिन तेरे कभी कुछ सुहाता नहीं
चाहता हूँ तुझे प्यार करता रहूँ
प्रेम मेरा मगर बदनाम भी ना हो
तुझे छींक भी ना आये और ज़ुकाम भी ना हो
कोई गम कोई दुःख सुबह शाम भी ना हो
-------रजत राजवंशी---------------------------

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भ्रष्टाचारी नेताओं क्या खाक करोगे तुम शासन,

-----------------रजत राजवंशी की रचना----------------
भ्रष्टाचारी नेताओं क्या खाक करोगे तुम शासन,
जब तुम ही इसकी जड़ हो तो कैसे हो इसका निष्कासन
कुर्सी पर तुम जब से बैठे, मोटा माल ही कूट रहे
शर्म नहीं आती तुमको, जनता का पैसा लूट रहे
अपने और रिश्तेदारों का, घर भर मालामाल किया
लूट-लूट जनता का पैसा, जनता को कंगाल किया
तुम्हें मूर्ख ही मानें नेता, तुम तो हो कलियुग के रावण
भ्रष्टाचारी नेताओं क्या खाक करोगे तुम शासन,
जब तुम ही इसकी जड़ हो तो कैसे हो इसका निष्कासन
आटा चावल दाल सब्जियां, बढ़ा दिए हैं सबके दाम
पानी मंहगा, दूध है मंहगा, महंगे आलू, मंहगे आम
बिजली मंहगी, सफ़र है मंहगा, कैसे जाएँ चारों धाम
मंहगाई की मारी जनता, कहीं ना पाए तनिक आराम
मगर लग्जरी, ए.सी. कार में नेता घूमें सुबहोशाम
सिंगापुर या लन्दन भागें, छींक आये या होए जुकाम
अरे एक दिन मरोगे तुम भी, कहाँ ले जाओगे सारा धन
भ्रष्टाचारी नेताओं क्या खाक करोगे तुम शासन,
जब तुम ही इसकी जड़ हो तो कैसे हो इसका निष्कासन
कभी हवाला कभी कमीशन, खूब मलाई खाते हैं
फिर भी पेट इतने मोटे हैं खाली ही रह जाते हैं
नई-नई स्कीमों से नित देश को लूटा जाता है
कागज पर बनती है योजना, माल डकारा जाता है
कागज़ पर बनती योजना, कागज़ पर पूरी हो जाती
देश और जनता को धोखा, देते इनको शर्म ना आती
अरे कलमुंहों बदल गया है तुम्हें पूजने वालों का मन
ऐसा न हो, एक दिन जनता काट ले तुम सबकी गर्दन
भ्रष्टाचारी नेताओं क्या खाक करोगे तुम शासन,
जब तुम ही इसकी जड़ हो तो कैसे हो इसका निष्कासन

-------रजत राजवंशी-----------------

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आम आदमी

------------------रजत राजवंशी की रचना----------------
हम आम आदमी हैं, सुख-दुःख में काम आते हैं
भ्रष्टाचार मिटाने की, भारत में अलख जगाते हैं
हम मस्त हवा के झोंके हैं, खुशबू बन कर छा जाते हैं
जब-जब जिन राहों से गुजरे, उन राहों को महकाते हैं
जब कोई दुखी हो रोता हो, आंसू उसके पी जाते हैं
दुःख की अग्नि में, सुखद हवा से उसका दिल बहलाते हैं
जब नींद उडी हो आँखों से, थपकी दे हम ही सुलाते हैं
और हर झपकी में कई-कई मीठे से ख्वाब दिखाते हैं
नफरत में जलते लोगों को, हम प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं
कोई हमसे प्यार करे ना करे, हम प्यार सभी पे लुटाते हैं

----------------------रजत राजवंशी -------------------
posed by yogesh mittal

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रविवार, 2 जून 2013

मस्ती के जो उसूल हैं उनको निभा के पी

-----------------रजत राजवंशी की रचना----------------
मस्ती के जो उसूल हैं उनको निभा के पी 
एक बूँद भी ना बच सके, बोतल हिला के पी 
साकी ना हो शराब ना हो, कोई गम नहीं 
पानी से भरा जाम और पानी मिला के पी
पीने के जिक्र से ही हम मदहोश हो गए
जब होश आया तो सभी को सुला के पी
बोतल भी थी अकेली और हम भी थे अकेले
पीने के नाम पर एक महफ़िल बुला के पी
माँ-बीवी बहन बेटी रोटी को तरसते थे
पीना तो जरूरी था, सभी को रुला के पी
------------रजत राजवंशी----------------


posed by yogesh
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