शनिवार, 7 सितंबर 2013

गुस्सा


रजत राजवंशी की रचना----------------
खुश रहना तू सीख ले बन्दे, गुस्सा कभी ना आये।
तुझे कभी गुस्सा ना आये।
गुस्सा करने का सदैव, अंजाम बुरा होता है, 
गुस्से में किया गया, हर काम बुरा होता है 
गुस्से में इन्सान कभी भी, भला-बुरा ना सोचे 
गलती करके पछताय, फिर अपनें बाल ही नोचें 
इस से तो अच्छा है गुस्से पे खुद ही काबू पाए 
खुश रहना तू सीख ले बन्दे, गुस्सा कभी ना आये।
तुझे कभी गुस्सा ना आये।
बिना किसी कारण गुस्से में अक्सर होए लडाई
गुस्से में लड़ जाते अक्सर सगे भाई से भाई 
साथ खेलते बीता बचपन, साथ पिया और खाया 
बड़े हुए तो गुस्से में अपनों का खून बहाया 
भूल खून का रिश्ता, गुस्से में क्यों तू खून बहाए
खुश रहना तू सीख ले बन्दे, गुस्सा कभी ना आये।
तुझे कभी गुस्सा ना आये।
चलते हुए सड़क पर जब हो जाये तू-तू मैं-मैं 
समझे खुद को बड़े बाप का सब ही करते झें-झें 
पहले मुंह से, फिर हाथों से, करते हाथापाई 
उसके बाद चाकू-गोली से करते ख़तम लडाई 
ज़रा-जरा से गुस्से में चाहे जान चली ही जाये 
खुश रहना तू सीख ले बन्दे, गुस्सा कभी ना आये।
तुझे कभी गुस्सा ना आये।

---------रजत राजवंशी (योगेश मित्तल)-------------------


योगेश मित्तल

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