शनिवार, 7 सितंबर 2013

काहे पैदा किया इंसान

-----------------रजत राजवंशी की रचना----------------


धरती माँ ने पकडे कान, काहे पैदा किया इंसान 
भाई से भाई लड़ता है, बेटा बाप पे अकड़ता है 
धन-दौलत की खातिर इन्सां, अपनों के सीने चढ़ता है 
बेटी बिके बाज़ारों में, ठगी भरी व्यापारों में
नेता रीढ़विहीन हो गए, जनता पिसती नारों में
कोई भेड़िया, कोई सूअर है, नहीं कोई इनमें इंसान
धरती माँ ने पकडे कान, काहे पैदा किया इंसान
अपने सीने पर मैंने इंसान को दिया बसेरा है
अपने स्वार्थ के लिए इसी ने मेरा सीना चीरा है
इन्सां होकर भी ये इन्सां, इन्सां का खून बहाता है
फिर भी जाने क्यों यह इन्सां, इन्सां ही कहलाता है
एक दिन खुद ये इंसानों से कर देगा मुझको वीरान
धरती माँ ने पकडे कान, काहे पैदा किया इंसान
कभी कहीं पर, कभी कहीं पर बम से खेल रहा है होली
जगह-जगह बमबारी करके फाड़ रहा है मेरी चोली
मैंने इसे दिया है पानी, मैंने इसे दिया है खाना
इसने शुरू किया है मुझ पर हिंसा का तांडव फैलाना
लगता है ये इन्सां एक दिन मेरी भी ले लेगा जान
धरती माँ ने पकडे कान, काहे पैदा किया इंसान
लूट-डकैती मार-काट, चाकू-छुरियां, बम और गोली
क्या इसको बस यही याद है, भूल गया है मीठी बोली
बात-बात पर लड़ने वाला, बिना बात झगड़ने वाला
जाति-पांति और ऊँच-नीच की रोज़ सीढियां चढ़ने वाला
प्रेम-प्रीत और सत्य अहिंसा का यह भूल गया है ज्ञान
धरती माँ ने पकडे कान, काहे पैदा किया इंसान
---------रजत राजवंशी (योगेश मित्तल)-------------------

योगेश मित्तल

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गुस्सा


रजत राजवंशी की रचना----------------
खुश रहना तू सीख ले बन्दे, गुस्सा कभी ना आये।
तुझे कभी गुस्सा ना आये।
गुस्सा करने का सदैव, अंजाम बुरा होता है, 
गुस्से में किया गया, हर काम बुरा होता है 
गुस्से में इन्सान कभी भी, भला-बुरा ना सोचे 
गलती करके पछताय, फिर अपनें बाल ही नोचें 
इस से तो अच्छा है गुस्से पे खुद ही काबू पाए 
खुश रहना तू सीख ले बन्दे, गुस्सा कभी ना आये।
तुझे कभी गुस्सा ना आये।
बिना किसी कारण गुस्से में अक्सर होए लडाई
गुस्से में लड़ जाते अक्सर सगे भाई से भाई 
साथ खेलते बीता बचपन, साथ पिया और खाया 
बड़े हुए तो गुस्से में अपनों का खून बहाया 
भूल खून का रिश्ता, गुस्से में क्यों तू खून बहाए
खुश रहना तू सीख ले बन्दे, गुस्सा कभी ना आये।
तुझे कभी गुस्सा ना आये।
चलते हुए सड़क पर जब हो जाये तू-तू मैं-मैं 
समझे खुद को बड़े बाप का सब ही करते झें-झें 
पहले मुंह से, फिर हाथों से, करते हाथापाई 
उसके बाद चाकू-गोली से करते ख़तम लडाई 
ज़रा-जरा से गुस्से में चाहे जान चली ही जाये 
खुश रहना तू सीख ले बन्दे, गुस्सा कभी ना आये।
तुझे कभी गुस्सा ना आये।

---------रजत राजवंशी (योगेश मित्तल)-------------------


योगेश मित्तल

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